मुक्का उपास

माघ महीना के अमावसिया ला मौनी अमावसिया कहे जाथे। एहा एक परब बरोबर होथे एखरे सेती एला मुक्का उपास के परब कहीथे। ए दिन ए परब के बरत करइया मन ला कलेचुप रहीके अपन साधना ला पूरन करना चाही। मुनि सब्द ले मौनी सब्द हा बने हावय। एखर सेती ए बरत मा कलेचुप मउन धारन करके अपन बरत ला पूरा करइया ला मुनि पद हा मिलथे। ए दिन गंगा-जमुना मा असनांद करना चाही। ए अमावसिया हा सम्मार के परगे ता अउ जादा बाढ़ जाथे। ए दिन धरती के कोनो कोन्टा मा सुरुज या फेर चन्दा ला ग्रहन हो सकथे। अइसन बिचार करके धरमी मनखे मन हा अमावसिया अउ पुन्नी के दिन असनांद अउ दान-पुन के करम ला करथें।
मौनी अमावसिया के दिन सुरुज अउ चंदा हा गउचर बस मकर रासि मा आथे। एखरे सेती ए दिन हा भरपूरहा उरजा अउ बल ले भरे होथे। ए दिन ला बङ पबरित माने जाथे। इही दिन मनु रिसि के जनम दिन घलो माने जाथे। मउन बरत के अरथ हावय अपन इन्दरी मन ला अपन बस मा करई। धीरे धीरे अपन बानी ला संइयम मा राख के अपन बस मा रखई हा मउन बरत आय। मनखे अपन-अपन छमता अउ समरथ के हिसाब ले ए मुक्का उपास ला एक दिन,एक महीना अउ कोनो-कोनो मन हा एक बच्छर ले धारन करे के संकलप कर सकथे। अपन बानी ला एक दिन अराम अउ बिसराम दे के मुक्का उपास के पालन करे जाथे। अइसन करई हा बङ़ शुभ मिने जाथे।



मौनी अमावसिया के दिन बङ़े बिहनिया ले मौन रही के असनांद करना चाही। एखर ले मन अउ चित हा सुद्ध अउ सान्त होथे। आतमा ले परमातमा के मिलन के रद्दा खुलथे। मुँहू ले, होंठ ले भगवान के नाँव जपे ले जादा मने मन मुक्का सुमिरन करे ले जादा फाइदा होथे। मनखे ला सरेस्ठ संत-महातमा असन मुक्का बेवहार करना चाही,अगर मुक्का नइ रहीं सकय ता कोसिस करँय के कोनो अपन मुहूँ ले करु अउ उराठिल भाखा झिन बोलँय।
समंदर ला मथे के समे अमरित ला पाय बर देवता अउ राक्छस मन के बीच मा अब्बङ़ झगरा होइस। ए झगरा मा कलस मा भराय अमरित हा छलक के जगा-जगा मा गिरे रहिस। इलाहाबाद, हरिद्वार, नासिक अउ उज्जैन मा अमरित के बूंद गिरे के बात कहे जाथे। अइसन जघा मा असनांद करके अपन सक्ति मुताबिक जप-तप अउ दान-धरम करे ले मनखे के सबो दुख-संताप अउ पाप के नास होथे। कोनो मनखे तीरथ-बरथ नइ जा सकय ता अपन घर मा बङ़े बिहनिया ले असनांद करके दिनभर मुक्का रहिके धरम-करम करना चाही। छल-कपट,लालच-लबारी ले दूरिहा रहिना चाही। भगवान बिसनु अउ संकर के अराधना करना चाही। संकर अउ बिसनु के सिरतोन मा एकेच हरँय फेर भगद मन के कलयान करे बर दु अलग-अलग सरुप धरें हावय। ए मुक्का उपास के इही सार हे के अपन बोली बचन ला सौ बेर सोंच समझ के बोलव या फेर मुक्का रहव, कलेचुप रहव। सियान मन, बिद्वान मन कहे घलाव हे के चुप असन कोनो सुख नइ हे ए जग मा। मुक्का रहीके मने मन मनन करन,मने मन मंथन करन। इही हा सबले सरेस्ठ साधना हरय। इही मा सरी सुख समाय हावय।

कन्हैया साहू “अमित”
शिक्षक. भाटापारा (छ.ग)
संपर्क ~ 9753322055



ये आलेख म बउरे गए सबद मन से संपादक के सहमति-असहमति :-

सहमत – परब, उपास, साधना, पूरन, मउन, धारन, बरत, असनांद, सम्मार, पबरित, संकलप, बिसराम, आतमा, परमातमा, महातमा, बेवहार, उराठिल, भाखा, समंदर, इन्दरी, राक्छस, अमरित, मुताबिक, दान-धरम

असहमत – ग्रहन (गरहन प्रचलन म हे त ग्रह के बाद ‘ण’ नइ लेना हे कहि के ‘न’ जोरे के का काम), गउचर (सीधा हिन्‍दी के शब्‍द ‘गोचर’ लेहे ले बात समझ म आही, इहां तो गरूवा चरई के भाव आवत हे जबकि लेखक ‘भ्रमण’ ल बताना चाहत हे), रासि (राशि लिखना चाही), उरजा (उर्जा लिखना चाही), रिसि (उर्जा लिखना चाही), चित (उतान वाले ‘चित’ प्रचलन म हे, ये ‘चित्‍त’ बर ‘चित’ के जघा चित्‍त ही लिखे ले बात समझ म आही), सुद्ध (शुद्ध लिखना चाही), सान्त (शांत लिखना चाही), फाइदा (फायदा लिखना चाही), सरेस्ठ (श्रेष्‍ठ लिखना चाही), कोसिस (उदीम लिखना चाही), सक्ति (शक्ति लिखना चाही)


‘अमावसिया’ जइसे सबद के प्रयोग मोर जानती म छत्‍तीसगढ़ी म प्रचलित नइ हे, भलुक ‘अम्‍मावस’ सबद के उपयोग होथे। कहूं हिन्‍दी के सबद ‘अमावश्‍या’ के छत्‍तीसगढ़ी करन करचनाच हे कहि के ‘अमावसिया’ लिखना उचित नइ हे। जउन सबद प्रचलन म हे तेला भले स्‍वीकार कर लिए जाए, (जइसे शब्‍द के जघा ‘सबद’ के प्रचलन कई बछर से हे, येकर पहिली साहित्‍य म उपयोग के प्रमाण भी हे) फेर जबरन हिन्‍दी के सबद मन ल आज छत्‍तीसगढ़ी बनाए के हम विरोध करथन।

गुरतुर गोठ के लेखक मन अपन रचना मन म अपन हिसाब से सबद के उपयोग करथें। इंहां प्रकाशित होए के मतलब, संपादक अइसे सबद मन के प्रयोग से सहमत हे, ये जरूरी नइ हे। हम इंटरनेट म छत्‍तीसगढ़ी भंडार भरे के उद्देश्‍य से रचना मन के प्रकाशन करत हवन। – संपादक
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